BHOPAL/INDORE/ JABALPUR: COVID-19 महामारी के कारण भारत में बच्चों के रूटीन वेक्सीनेशन में बड़ी गिरावट आई। सभी वेक्सिनेशन संसाधनों को कोविड-19 वेक्सिनेशन में लगाने से और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर अतिरिक्त भार की वजह से महामारी ने लगभग हर जगह बच्चों के रूटीन टीकाकरण को बाधित किया कर दिया। मध्य प्रदेश भी इस समस्या से अछूता नहीं रहा। बच्चों के टीकाकरण में आई कमी और वैक्सीन हेसिटेंसी के चलते हाल ही में राज्य में मीजल्स-रुबेला के कई जिलों में आउटब्रेक्स हुए जिसमें हज़ारों बच्चें प्रभावित हुए। इन हालातों के इतर मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे के सामने एक बड़ा चैलेंज ये भी है कि उसे सिर्फ 120 दिनों के अंदर राज्य के टीकाकरण से छूटे हुए 2.63 लाख बच्चों को मीजल्स-रुबेला के लिए वेक्सीनेट करना है। कारण हैं भारत के सामने दिसंबर -2023 तक देश से मीसल्स-रूबेला उन्मूलन (इरेडिकेट) का लक्ष्य। ये ग्राउंड रिपोर्ट राज्य में बच्चों के टीकाकरण से जुड़े उपरोक्त और अन्य समस्याओं और समाधानों पर विस्तार से बात करती है...
राज्य का सबसे जागरूक शहर बच्चों के वेक्सीनेशन को लेकर उदासीन!
इंदौर...मप्र का सबसे आधुनिक शहर! अनुमानित आबादी 38 लाख से ज्यादा। इस शहर की खासियत ये है कि यहां रहने वाले लोग जागरूक है। और लोगों की जागरूकता का इससे बड़ा सबूत क्या है कि उन्हीं की वजह से पिछले छह सालों से ये सबसे साफ शहर की कैटेगरी में शामिल है। मगर इस शहर का एक दूसरा पहलू भी है, जो थोड़ा गंभीर है। और ये पहलू जुड़ा हुआ है बच्चों के बच्चों के स्वास्थ्य से - यानी चाइल्डहुड वेक्सीनेशन की कमी के चलते यहाँ के बच्चों में बढ़ते मीजल्स-रुबेला के केसेस से। इसी पहलू की पड़ताल करने द सूत्र की टीम पहुंची इंदौर! पड़ताल का एक सिरा इंदौर के खजराना इलाके के वार्ड 39 में हैं। खजराना की इलियास कॉलोनी में रहने वाले वाहिद हुसैन का घर। वाहिद वो शख्स है जिसने इसी साल फरवरी में अपने 11 साल के बेटे जोएब को खो दिया। जब हम वाहिद के घर पहुंचे तो वो इस बारे में ज्यादा बात करने को तैयार नहीं हुए, लेकिन इतना ही बताया कि 5 फरवरी को जोएब की तबीयत ज्यादा खराब हुई थी और 6 तारीख को उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वाहिद से जब पूछा गया कि उन्होंने जोएब के बचपन में उसके रूटीन वैक्सीनेशन करवाया था या नहीं? तो वाहिद ने दावा किया कि जोएब को सारे टीके लगे थे। लेकिन इस वार्ड में काम करने वाली ANM (Auxiliary Nurse Midwifery - सहायक नर्स दाई) का कहना कुछ और ही है। ANM जीनत बानो साफ कहती है कि जब जोएब अस्पताल में भर्ती था तो उसका वैक्सीनेशन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।
दरअसल, जोएब इंदौर के उन 47 बच्चों में शामिल था जिनके इसी साल मीजल्स केस रिपोर्ट किये गए थे। मीजल्स-रुबेला के ये 47 केसेस इसी साल जनवरी से मार्च तक इंदौर के वार्ड नंबर 60 (नॉर्थ तोड़ा और साउथ तोड़ा - चंपाबाग), वार्ड नंबर 39 (इलियास कॉलोनी और हिना कॉलोनी), वार्ड ३९ (रोशन नगर और दौलत बाग), वार्ड नंबर 38 (अशर्फी नगर), वार्ड नंबर 68 (छत्रीपुरा और टाटपट्टी बखल) एरियाज से रिपोर्ट किए गए। और इस रिपोर्ट ने मप्र के स्वास्थ्य अमले के कान खड़े कर दिए हैं। आखिर मीजल्स-रुबेला है ही इतनी खतरनाक बीमारी!
जानलेवा खसरा-रूबेला संक्रमण और जीवनरक्षक टीका
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक मीजल्स विश्व के सबसे संक्रामक वायरल रोगों में से एक है जो काफी तेजी से फैलती है। यदि किसी बच्चे ने मीजल्स का टीका नहीं लगाया है तो उसका इसकी चपेट में आने की संभावना 90 फीसदी तक होती है। मीजल्स से पीड़ित एक बच्चा अपने आसपास मौजूद 12 से 18 अन्वेक्सीनेटेड लोगों को इंफेक्शन दे सकता है। इसमें माेर्टेलिटी रेट 30 फीसदी तक है। इस बीमारी को रोकने का सिर्फ एक ही तरीका है और वो है वैक्सीन यानी टीकाकरण। मीजल्स की रोकथाम के लिए बच्चों को 2 टीके लगाए जाते हैं। पहला नौ महीने की उम्र में तो दूसरा टीका 16 महीने की उम्र में लगता है। लेकिन इंदौर में जिन 47 बच्चों में मीजल्स केस रिपोर्ट हुए थे, उनके माता-पिता ने अपने बच्चों को टीका लगवाने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई थी।
राज्य में बच्चों के टीकाकरण में कमी के कारण: वैक्सीन के प्रति हेसिटैंसी, रेजिस्टेंस और समझ का अभाव
इंदौर जिला टीकाकरण अधिकारी तरुण गुप्ता का कहना है कि चौंकाने वाली बात ये रही कि मीजल्स के सभी रिपोर्टेड मामलों में से 80 फीसदी मामलें उन बच्चों के थे जो पूरी तरह से अन्वेक्सीनेटेड थे, तो वहीँ 20 फीसदी मामले पार्शियली वेक्सीनेटेड वाले बच्चों के थे। सभी हॉटस्पॉट वाले इलाकों में मीजल्स की वैक्सीन को लेकर बच्चों के अभिभावकों में प्रतिरोध, हिचक और गलत धरणाएँ हैं, जिसके चलते वो बच्चों को टीका लगवाने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
टीकाकरण से बच्चे बीमार हो जाएंगे, ये धारणा झिझक का कारण
अब सवाल उठता है कि आखिरकार माता पिता अपने बच्चों को टीका क्यों नहीं लगवाना चाहते हैं? आखिर इसकी क्या वजह है? इन्ही सवालों के जवाब जानने के लिए हम पहुंचे इंदौर के ही नॉर्थ तोड़ा इलाके में। यहां रहती हैं शहनाज बी। शहनाज के चार बच्चे हैं - एक की उम्र है 9 साल, दूसरे की 8 साल तीसरे बच्चे की उम्र है 5 साल और चौथे बच्चे की उम्र है 3 साल। शहनाज बी ने अपने चारों बच्चों का टीकाकरण नहीं करवाया है। ऐसा उन्होंने क्यों किया, इसका जवाब काफी निराशाजनक है। शहनाज़ बी बताती हैं, "मेरे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, तो अब टीका लगवाने का कोई मतलब नहीं हैं।" दरअसल, शहनाज वैक्सीन के खिलाफ फैलाई जाने वाली भ्रामक जानकारियों यानि मिसइन्फोर्मशन की शिकार है।
ANM से बात करते हुए इंदौर के नार्थ तोडा की निवासी शहनाज़ बी
दूसरी तरफ इसी इलाके में रहने वाली तारा है, जिसकी लापरवाही की वजह से उसके
चार साल के बेटे मयंक की जान पर बन आई थी। मयंक जब पैदा हुआ तब उसके
माता-पिता ने उसे टीके लगवाना जरुरी नहीं समझा। बच्चे को समय पर टीका नहीं
लगने का नतीजा ये रहा कि मयंक की तबीयत खराब होने लगी। जब बच्चे की तबीयत
ज्यादा बिगड़ी तो उसे अस्पताल ले जाया गया और किसी तरह डॉक्टरों ने मयंक की
जान बचाई।
तारा बताती हैं, "डॉक्टर ने हमें बताया कि हमरे बेटे मयंक की ये हालत उसे बचपन में टीके न लगने की वजह से हुई है। अगर उसे समय पर सभी जरुरी टीके लगाए जाते तो उसकी ये हालत न होती।" तारा अपनी गलती मानती है पर साथ ही ये भी कहती है ,"हम दोनों पति-पत्नी दिहाड़ी मज़दूरी का काम करते हैं और इसकी वजह से बच्चे के वेक्सीनेशन पर ध्यान नहीं दे पाए।"
दरअसल, कम वैक्सीनेशन कवरेज वाले ज्यादातर क्षेत्रों में रहने वाले लोग तारा की तरह आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं। वो अपनी आजीविका के लिए छोटे-मोटे काम करते हैं या फिर दिहाड़ी मजदूरी। उनका कहना होता है, “हमारे सामने रोज़ मज़दूरी करने की मजबूरी है, अगर हम बच्चों को वैक्सीन लगवाने और उनका ध्यान रखने घर रुक जाएंगे तो कमाएंगे कैसे?”
यानी कहीं लोग बच्चों के टीकाकरण को लेकर भ्रामक जानकारी और हिचक के शिकार हैं तो कहीं टीके को लेकर लापरवाही है। मध्य प्रदेश में बच्चों के टीकाकरण में कमी के कारणों के शहनाज़ बी और तारा के केवल दो मामले ही नहीं है, बल्कि लोगों में टीकाकरण के लिए जरुरी शिक्षा और जागरूकता की कमी भी टीकाकरण में कमी की एक बड़ी वजह हैं। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शीला भंभल बताती हैं , "दरअसल, टीके लगवाने पर बच्चों को बुखार आना स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन कई महिलाएं अपने बच्चों को इसलिए टीके नहीं लगवाती कि उसकी वजह से वो बीमार हो जाते हैं।"
इंदौर के ही साउथ तोड़ा इलाके में रहने वाली रिजवाना और फेमिदा भी ऐसा ही सोचती हैं। रिज़वाना की 2 साल और साढ़े चार साल की दो बेटियाँ हैं जिनके टीकाकरण अधूरे हैं। बच्चों के अधूरे टीकाकरण के बारे में बात करने पर रिजवाना कहती हैं, "मैंने दोनों बच्चों के का टीकाकरण पूरा नहीं करवाया है। मुझे डर है कि टीकाकरण की वजह से मेरे बच्चों की तबियत ख़राब हो जाती है। जब भी में इनको वेक्सीन लगवाती हूँ, बच्चों को बुखार हो जाता है और वो लंगड़े चलने लगते हैं। इसलिए मैंने टीके पूरे नहीं लगवाए।"
रिजवाना की ही तरह फेमिदा के बेटे के 4 साल , 3 साल और 10 महीने के 3 बच्चे हैं - तीनों को टीके नहीं लगे हैं। उनका कहना है कि तीनो बच्चों को बार-बार निमोनिया होता रहता है। बच्चों के बीमार होने के डर से उन्हें टीके नहीं लगवा रहे।
'कम कवरेज वाले क्षेत्रों में वैक्सीन प्रतिरोध से निपटना मुश्किल'
अब वैक्सीनेशन को लेकर गलतफहमियों की शिकार इन महिलाओं को आखिर जागरूक करने की जिम्मेदारी स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जैसे आशा कार्यकर्त्ता और ANM की होती है। वो कोशिशें तो बहुत करती हैं मगर महिलाओं के मन में टीके को लेकर जो भ्रांतियां है उन्हें दूर करना इनके लिए इतना आसान भी नहीं। नार्थ तोडा और साउथ तोडा एरिया में आशा कार्यकर्त्ता सीमा अंतर्वेदी द सूत्र से बातचीत में अपनी परेशानी साझा करती हैं," दरअसल, शिक्षा की कमी की वजह से इस एरिया में कई लोग अपने बच्चों को वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते। काफी कोशिशों के बावजूद कई परिवारों को टीकाकरण की अहमियत समझाना और उसके लिए कन्विंस करना बहुत मुश्किल हो जाता है।"
मध्य प्रदेश में मीजल्स और रूबेला इन्फेक्शन के चिंताजनक आंकड़े
बच्चों के वेक्सीनेशन को लेकर समुदायों में मौजूद ये हेसिटेन्सी, रेजिस्टेंस, इग्नोरेंस यानि हिचक, प्रतिरोध, ग़लतफहमी और जानकारी की कमी सिर्फ वार्ड नंबर 60 यानी नॉर्थ तोड़ा और साउथ तोड़ा, चंपाबाग और वार्ड नंबर 39 यानि इलियास कॉलोनी में ही नहीं है। बल्कि शहर के अन्य क्षेत्रों में भी है। अब, जब इंदौर जैसे जागरूक शहर में वैक्सीनेशन को लेकर इतनी गलतफहमियां और भ्रांतियां है तो मप्र के दूर दराज इलाकों के क्या हाल होंगे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। और आंकड़ें इस बात की पुष्टि करते हैं। इसी साल मप्र में 4360 मामले संदिग्ध पाए गए थे इन सभी मामलों की जांच की गई तो 1033 मामले मीजल्स और रूबेला के कन्फर्म पाए गए। इनमें सागर जिले का राहतगढ़ टॉप पर है जहां 151 बच्चे पॉजिटिव पाए गए जिसमें से 5 बच्चों की मौत हो गई। रतलाम, इंदौर, जबलपुर, बुरहानपुर और नरसिंहपुर ये वो जिले हैं जहां मीजल्स और रूबेला के केस पॉजिटिव मिले हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में भी मध्य प्रदेश में मीजल्स और रूबेला के 525 केसेस मिले थे जिनमें से 2 बच्चों की मौत हो गई थी। देश और मध्य प्रदेश में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत साल 2015 से मिशन इंद्रधनुष अभियान चल रहा है। मकसद था रूटीन से छूटे हुए सभी बच्चों का टीकाकरण करना और कम टीकाकरण कवरेज वाले क्षेत्रों में टीकाकरण बढ़ाना। लेकिन इसके बाद भी इतनी संख्या में मीजल्स और रूबेला के केसेस का आना स्वास्थ्य अमले के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।
कोविड-19 महामारी के कारण बच्चों के रूटीन टीकाकरण में गिरावट
हालांकि, मीजल्स और रूबेला का राज्यभर में आउटब्रेक होने की एक बड़ी वजह कोरोना महामारी भी रही है। स्टेट वैक्सीनेशन इंचार्ज संतोष शुक्ला बताते हैं, "दरअसल, कोरोनाकाल के दौरान कोरोना नेक्सीनशन को प्राथमिकता के चलते रूटीन चाइल्डहुड इम्यूनाइजेशन के हज़ारों सेशन रद्द करने पड़े। जिसके चलते बच्चों के रूटीन टीकाकरण की कवरेज की जो दर मार्च 2020 में 90% तक पहुँच गई थी, वो गिरकर 55% तक सिमट कर रह गई थी। और यही कारण रहा कि मीजल्स और रूबेला ने मध्य प्रदेश में एक बार फिर पैर पसार लिए और आउट ब्रेक की स्थिति बनी।"
4 महीनों में 2.63 लाख बच्चों को टीकाकरण करने की चुनौती!
अब कोरोना महामारी की वजह से टीकाकरण में पिछड़ चुका MP का स्वास्थ्य अमला नए सिरे से टारगेट को पूरा करने में जुटा है। विभागीय अधिकारी अच्छी खासी मेहनत भी कर रहा है, लेकिन राज्य के सामने चुनौती बड़ी हैं! दरअसल, दिसंबर 2023 तक राज्य से ही नहीं देश से मीजल्स और रूबेला का उन्मूलन का टारगेट है, और मप्र में जिन बच्चों का टीकाकरण अभी भी बाकी है उनकी संख्या है 2 लाख 63 हजार! पहले इन सभी बच्चों को 31 मार्च तक वैक्सीनेट करना था, लेकिन अब ये डेडलाइन दिसंबर तक बढ़ा दी गई है।यानी आने वाले 4 महीने में इन सभी बच्चों को वैक्सीनेट करना है।
बच्चों के टीकाकरण से जुड़े राज्य के कुछ और महत्वपूर्ण आंकड़ों पर गौर करे तो..
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS-5 के 2019-21 के आंकड़ों के मुताबिक मप्र में 24 से 35 महीने के 65 फीसदी बच्चों ने मीजल्स और रूबेला का वैक्सीन नहीं लिया है। और WHO के जो मानक है उसके मुताबिक 95 फीसदी वैक्सीनेशन होने पर ही मीजल्स की वापसी की आशंका खत्म होती है।
दूसरी तरफ बच्चों को जन्म से लेकर 14 साल तक जो 12 टीके लगते हैं उनका टारगेट भी मध्य प्रदश में अभी अधूरा है। हाल ही में संसद के मानसून सत्र के दौरान 8 अगस्त 2023 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जवाब दिया गया कि साल 2022-23 में मध्य प्रदेश में 98,568 ऐसे बच्चे हैं जो या तो अनवेक्सीनेटेड हैं या फिर पार्शियली वेक्सीनेटेड।
वेक्सीन हेसिटेन्सी से निबटने धार्मिक नेताओं से मिलाया हाथ
यानी राज्य के स्वास्थ्य महकमे से सामने चुनौतियां तो है ही! पर इनमें भी स्वास्थ्य विभाग के लिए जो सबसे ज्यादा चिंता का सबब है वो है बच्चों के टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में बनी हुई भ्रांतियां! अब इसे दूर करने के लिए मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा जागरूकता तो फैला ही रहा है, लेकिन कुछ नए तरीके भी अपना रहा है। क्या है ये नए तरीके? ये जानने के लिए हम इंदौर से 500 किमी दूर जबलपुर पहुंचे।
29 लाख के करीब की कुल जनसँख्या वाले जबलपुर में 5 साल की उम्र से नीचे 45 हजार बच्चे हैं। और इनमें से 5 हजार बच्चे ऐसे हैं जिनका वैक्सीनेशन पूरा नहीं हुआ है। इंदौर की तरह जबलपुर में भी कुछ समुदाय विशेष के बीच टीकाकरण को लेकर भ्रांतियां फैली हुई है। यहां पिछले कुछ महीने में मोतीनाला वार्ड 38, बहोराबाग एरिया, रबींद्रनाथ टैगोर वार्ड और अन्य जगहों में मीजल्स और रूबेला के 11 से ज्यादा मामले सामने आए थे।
द सूत्र की टीम यहां के बहोराबाग एरिया में रहने वाले मोहम्मद शरीफ के घर पहुंची।शरीफ के 4 पोते-पोतियां है। 7 साल के बड़े पोते एहसान की मार्च में तबीयत खराब हुई थी और वो मीजल्स का शिकार हुआ था। डॉक्टरों और सरकारी अधिकारियों के अनुसार एहसान को मीसल्स-रूबेला का टीका ही नहीं लगवाया गया था। हालांकि, परिवार के लोग इस बात से आनाकानी करते नजर आए। 1500 की आबादी वाले बहोराबाग एरिया में करीब 106 ऐसे बच्चे हैं जो टीकाकरण की जरुरत हैं।
बहरहाल, मोहम्मद शरीफ के जैसे लोगों से डील करने के लिए और इनके बच्चों को टीका लगाने के लिए प्रशासन ने एक नया तरीका अख्तियार किया है। ऐसे लोगो को समझाने के लिए धर्म गुरुओं और लोकल लीडर्स का सहारा लिया जा रहा है। जबलपुर के शहर क़ाज़ी रियाज़ आलम मोहमदीन इसी पहल का हिस्सा हैं। रियाज़ आलम मोहमदीन अंसार नगर मस्जिद में अब शुक्रवार को सिर्फ नमाज़ ही नहीं पढ़वाते। बल्कि एक और बेहद जरुरी कार्य यानी टीकाकरण के प्रति जागरूकता फैलाने में सरकार की मदद भी कर रहें हैं।
स्वास्थ्य महकमे ने बच्चों के टीकाकरण के लिए समुदायों को प्रेरित करने के लिए धर्मगुरुओं का सहारा लिया है
रियाज़ आलम मोहमदीन का कहना है, "जबलपुर शहर के अंदर टीकाकरण के लिए लोगो में उदासीनता को देखते हुए सरकार ने शहर के इमामों के साथ मीटिंग की और हमारे साथ की जरुरत बताई। हम भी टीकाकरण के महत्व को समझते हुए इस बात पर तैयार हो गए।
शहर क़ाज़ी आगे टीकाकरण से जुड़े मिसइन्फोर्मशन के बारे में आगे कहते हैं, "बच्चों को टीका लगवाकर खसरे जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाना हर किसी की जिम्मेदारी का विषय है। पर जब भी कोई वैक्सीन आती है, उसके लिए गलत अफवाहें पहले फैला दी जाती हैं। इसीलिए आज सिर्फ हमारी मस्जिद से ही नहीं बल्कि जबलपुर की कई ऐसी मस्जिदें हैं जहाँ से बच्चों के टीकाकरण को लेकर लगातार अनाउंसमेंट्स किये जाते हैं और कोशिश की जाती है कि बच्चों के माता-पिता के मन से टीकों के लिए जो डर और दहशत बैठी है, वो दूर हो जाए।"
जिला टीकाकरण अधिकारी विनोद गुप्ता सरकार की इस पहल के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, "भारत एक धर्म प्रधान देश में बेहद ज्यादा है। ऐसे में रिलीजियस लीडर्स का इम्पोर्टेंस काफी ज्यादा है क्योंकि लोग उनकी बातों को मानते हैं और फॉलो करते हैं। इसीलिए हमने एक योजना बनाई जिसमें हम अलग-अलग धार्मिक गुरुओं को टीकाकरण अभियान से जोड़ रहे हैं।" ऐसा करने के पीछे प्रशासन की सोच यही है कि जो लोग बच्चों का टीकाकरण को लेकर स्वास्थ्य महकमे की नहीं मानते हैं, उनपर धर्मगुरूओं की बातों का असर जरूर होता है।
बच्चों के रूटीन और मीजल्स और रूबेला वैक्सीनेशन की राह में अन्य रुकावटें
स्वास्थ्य महकमे के सामने वैक्सीन हेसिटेन्सी और वैक्सीन रेजिस्टेंस के अलावा भी और चुनौतियां हैं, जिसकी वजह से राज्य में बच्चों का टीकाकरण पीछे है। इसके बारे में स्टेट वैक्सीनेशन इंचार्ज संतोष शुक्ला और इंदौर जिला टीकाकरण अधिकारी तरुन गुप्ता ने हमारी टीम के साथ तफसील से बात की। दोनों ने जिन मुख्य चुनौतियों का जिक्र किया वो है...
1. लेबर क्लास का बच्चों के साथ माइग्रेशन, इनके टीकाकरण की ट्रैकिंग मुश्किल
डॉ. संतोष शुक्ला के अनुसार मध्य प्रदेश पांच राज्यों से घिरा हुआ है..इस तरह से यहाँ से मजदूर माँ-बाप का दूसरे राज्यों में नौकरी या अन्य कारणों से पलायन ज्यादा है। माइग्रेशन के मामले में मध्य प्रदेश देश में यूपी और बिकार के बाद तीसरे नंबर पर है। इसकी वजह से कई बच्चों के टीकाकरण का कोई ठोस रिकॉर्ड ही नहीं रह जाता। कई बार बच्चे के माता पिता पहला डोज़ तो लगवा लेते हैं लेकिन दूसरा डोज़ मिस कर देते हैं।
2. स्टाफ और वैक्सीनेशन सेंटर्स की कमी
डॉक्टर तरुण गुप्ता बताते हैं कि, "इंदौर की 70% आबादी अर्बन है यानी इंदौर मेजरली एक अर्बन एरिया है। यहाँ कुल 750 आंगनबाड़ी सेंटर्स है जो 10 लाख तक की पापुलेशन कवर करती है। तो एक तरह से हमें और आंगनबाड़ी सेंटर्स चाहिए। साथ ही हमारे पास वेक्सीनेशन की मोबलाइज़र फ़ोर्स की काफी कमी है। 1 आशा 1000 की पापुलेशन को सर्व करती है और हमारे पास करीब 1300-1400 आशा ही हैं। हमें और आशा मेंबर्स की जरुरत है। अगर हमारे पास मैनपावर अच्छा होगा तो तो हम सोसाइटी के हर सेक्शन तक पहुँच पाएंगे।"
3. उच्च आर्थिक स्थिति वाले परिवार बच्चों को वेक्सीनेट करने आंगनबाड़ी नहीं आना चाहते
भोपाल, इंदौर या जबलपुर जैसे अर्बन एरियाज में कुछ ऐसे उच्च सोसिओ-इकनोमिक पोजीशन तबके भी होते है जो बच्चों को वेक्सीनेट तो करवाना चाहते हैं पर आंगनबाड़ी सेंटर्स पर आने से झिझकते हैं। ऐसे में ये कई बार प्राइवेट अस्पतालों का रुख करते हैं। आइए में इन मामलों में कई बार इन बच्चों का टीकाकरण रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं आ पाता या देरी से आता है।
4. ट्राइबल एरियाज की दूरस्थ इलाकों में पहुंचना मुश्किल
MP के 20 ऐसे जिले और 84 ब्लॉक्स हैं जो ट्राइबल एरियाज में आते हैं। और 1000 से ज्यादा डीप फारेस्ट विलेज हैं। यहाँ पहुंचना और बच्चों को वेक्सीनेट करना आसान नहीं हैं।
चुनौतियों से निबटने के लिए प्रशासन के उपाय
मप्र की भौगोलिक स्थिति भी स्वास्थ्य महकमे के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि, इन सभी चुनौतियों से निबटने के लिए प्रशासन द्वारा कई स्तर पर उपाय भी अपनाए जा रहे हैं जैसे...
U-WIN वेक्सीनेटर
माइग्रेटरी क्लास के और बाकी ड्राप आउट बच्चों को ट्रैक करने के लिए U-WIN एप की मदद ली जा रही है। ये कोरोना महामारी के लिए तैयार किए गए CO-WIN ऐप की तरह ही है। इसकी मदद से ड्राप आउट बच्चों का रिकॉर्ड ट्रैक किया जा सकेगा। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के टीकाकरण के लिए व्यक्तिगत ट्रैकिंग की जा सकेगी। साथ ही टीके की आगामी खुराक के लिए रिमाइंडर और ड्रॉपआउट के फॉलो-अप के लिए डिजिटल रजिस्ट्रेशन किया जाएगा ताकि टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया डिजिटलाइज्ड हो जाए।
वैक्सीनेशन स्टाफ की व्यवस्था के प्रयास
वैक्सीनेशन के काम के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास 14 हजार ANM, 17 हज़ार सुपरवाइजर 3 हजार 500 AVD, 11 हज़ार वॉलेंटियर्स, 32 हजार साथिया मतलब राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत टीनएज वोलेंटियर्स,14 हजार NHM सेंटर हैं। ये सभी टीकाकरण की प्रक्रिया में अहम रोल अदा करते हैं। लेकिन संतोष शुक्ला के अनुसार मप्र में अभी 14 हजार वैक्सीनेटर्स ही है, और ज्यादा की जरुरत है जिसके लिए वैकल्पिक इंतजाम किए जा रहे हैं।
मिलिए मध्य प्रदेश की इकलौती महिला AVD से!
वेक्सीनेशन की हर प्रक्रिया में सबसे अहम हो जाता है स्वास्थ्य अमला! जबलपुर में हमारी मुलाकात हुई एक ऐसी ही एवीडी यानी आल्टरनेट वैक्सीन डिस्ट्रिब्यूटर डॉली वंशकार से। डॉली मप्र की एकमात्र महिला एवीडी है। एवीडी का काम होता है टीकाकरण के दिन कोल्ड स्टोरेज प्वॉइंट से वैक्सीन लेकर दूर सेंटर तक वैक्सीन पहुंचाना। पिछले सात सालों से डॉली का यहीं रूटीन है। वो हर हफ्ते मंगलवार और शुक्रवार को कोल्ड स्टोरेज से वैक्सीन के डिब्बे उठाती है, स्कूटर पर रखती है और कई किमी दूर स्थित सेंटर तक पहुंचा देती है। वैक्सीन बॉक्सेस पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग उन्हें एक बॉक्स के 125 रु. देता है। यानी 2 बॉक्स का 250 रुपया। यानी एक दिन दो 2 बॉक्स पहुंचने के का 250 रुपया। और दो दिन का 500 रुपया। डॉली को इस काम के लिए पैसा बेहद कम मिलता है इसके बाद भी वो इस काम में जुटी हुई हैं।
स्मार्ट वेक्सीनेशन सेंटर्स
इसके अलावा बच्चों के टीकाकरण तो बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य अमला इंदौर, भोपाल और जबलपुर जैसे शहरी इलाकों में स्मार्ट वैक्सिनेशन सेंटर्स बनाने की पहल कर रहा है। ताकि लोग सेंटर्स पर आने से हिचकिचाहट महसूस न करें।
वन समितियों का सहारा
साथ ही आदिवासी इलाकों में वैक्सीनेशन के लिए स्वास्थ्य अमला वन समितियों का सहारा ले रहा है।
रूटीन वैक्सीनेशन के लिए 100 करोड़ से ज्यादा का फंड
दिसंबर 2023 तक ड्राप आउट बच्चों का वेक्सिनेशन पूरा करने और मीसल्स रूबेला को ख़त्म करने के टारगेट के चलते सरकार वैक्सीनेशन पर अच्छा खासा पैसा भी खर्च कर रही है। 10 फरवरी 2023 को लोकसभा में दिए गए जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने आंकड़े गिनाए कि MP को केंद्र सरकार ने पिछले तीन सालों में 100 करोड़ से ज्यादा का फंड दिया है। साथ ही अब मीजल्स-रूबेला की रोकथाम के लिए मध्यप्रदेश में विशेष टीकाकरण अभियान सघन मिशन इंद्रधनुष 5.0 (IMI 5.0) भी शुरू किया गया है। अभियान तीन चरणों: 7-12 अगस्त, 11-16 सितम्बर व 9-14 अक्टूबर 2023, में पूरा होगा। सघन मिशन इंद्रधनुष अभियान में 5 वर्ष की आयु तक के ड्रॉप आउट और लेफ्ट आउट बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं की छुटी हुई खुराक दी जानी है। कुल मिलाकर देखा जाए तो स्वास्थ्य अमला चुनौतियों से पार पाने की कोशिश कर जरूर रहा है, मगर जाहिर है ये सफर इतना आसान नहीं है।